हर बार की तरह २६ नवम्बर 2008, बुधवार की रात को साढ़े नौ बजे एक बार फिर मुंबई में बम ब्लास्ट का कहर टूटा । भारत में बम ब्लास्ट कोई नई बात नही है और देशवासी भी इसके अब आदि हो गए है। बस नया है तो आतंक का नया तरीका। इससे पहले भी आतंकियों ने आतंक फैलाये है लेकिन इस बार इरादा कुछ और है। पहले की तरह बाज़ार में ब्लास्ट न करके इस बार वो सेना से दो दो हाथ करने के मूड में आए है। कहा जा रहा है की भारत में हुए अब तक जितने भी धमाके हुए है उनमे ये सबसे ज्यादा डरावना व भयानक है। अगर पूरे विश्व के आतकवादी गतिविधियों व बम धमाको पर नजर डाले तो यह अमेरिका के ९/११ घटना की याद दिलाता है। वाकई इन आतंकवादियों ने तो हद ही कर दी है। २६ नवम्बर की रात मुंबई में जो घटना घटी वो दिल दहला देने वाला मंजर था । समुद्री रास्ते से भारी तादाद में आए ये आतंकवादी अत्याधुनिक ऐके-४७ व ग्रेनेड से लैस थे इन आतंवादियों ने मुंबई के हाई प्रोफाइल एरिया में घुस कर दस जगहों पर विस्फोट कर मासूम व बेगुनाह लोगो पर ताबड़तोड़ गोलिया चलाई और सैकड़ो लोगो की जान लेली। आतंकवादियों ने मुंबई के सबसे पुराने होटल ताज होटल व ओबेरॉय होटल में घुस कर विदेशी सैलानियों व पर्यटकों पर जो जुल्म किए वो इंसानियत को शर्मसार कर देती है। मीडिया के जरिये इस घटना का ताजा हाल पूरी दुनिया तक पहुच रहा था। ख़बर पाते ही मुंबई पोलिश सतर्क हो गई और जगह जगह नाके बंदी और जांच शुरू हो गई। अब तक देश के सबसे बड़े इस आतंकी घटना को अगर भारत का ९/११ कहा जाए तो कोई ग़लत नही होगा। इस आतंकी घटना को खत्म करने एन एस जी के जवान व अर्धसैनिक बलों की मदद ली गई। आतंकवादियों से मुठभेड़ में ऐटीएस के चार आला अफसर समेत १४ पुलिशकर्मी शहीद हो गए जिसमे ऐटीएस प्रमुख हेमंत करकरे भी शामिल थे। भारत की जनता उन राजनेताओ से यह पूछना चाहती है की आतंकवाद की यह लड़ाई हम कब तक लड़ते रहेंगे। अगर हम इस घटना पर ध्यान दे भारत को कई समस्याओ से दो चार होना पड़ सकता है जैसे हमला होते ही इंग्लैंड ने भारत दौरा बीच में ही रद्द कर दिया। ऑस्ट्रेलिया ने भी भारत आने पर आपत्ति जताई है वही भारत में होने वाले चैंपियंस ट्राफी भी निरस्त कर दी है। पर्यटन की दृष्टि से यह घटना भारत आने वाले उन विदेशी पर्यटको को भी प्रभावित करेगा जो हर साल भारी संख्या यहाँ में आते है। हम सभी राजनीतिक दलों से उम्मीद करते है की देश की इस दुखद परिस्थिति में लोगो का साहस बढाये न की इस पर राजनीति करे और जल्द से जल्द विकराल रूप लेती इस समस्या का हल निकाले।
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1 टिप्पणी:
Dear Ashish ji,
Apne jo binduo per prakash daal hai wo swagat yogya hai.
Itna kuch hone ke baad Vastavikta yahi hai ki kya hum apni soch badal paye hai?
Ya kya hum netao ko chunte samay kewal apbe desh aur samaj ke baare mea sochate hai?
Kya apne aas paas ke mahul ke liye hum samvedansheel hai?
Kya hum un saari cheejo ke liye taiyar hai jiske baare mea hum sochate hai aur kabhi kabhi bolate hai?
Ye jantantra 'hai janta ke liye janta ke dwara' lekin jab janta hi jimmedari se apne is tantra ko nahi chala paye to prashn ye uthata hai ki 'kiske liye aur kiske dwara', aur iska jabab hume swyam khojna hoga.
Mumbai ke logo dwara kiya gaya virodh pradarshan kabiletareef hai aur ye ek prakaar ka suchak hai ki hum kuch sochane lage hai aur uske baare mea kuch karne lage hai.
Rahi netao ki baat to yeh kahna galat nahi hoga ki neta madari aur hum bandar ban gaye hai aur wo jab chahe hume nacha sakte hai. Netao ki chavi ki baat kare to aajadi ke samay netao ko rajneta kaha jata tha aur ye sun kar wo garv karte the lekin aaj to stithi ye ho gaye hai ki netao ko bahubali kaha jata hai aur wo ye sun kar khus hote hai. Atah netao ka ye rajneta se bahubali ke safar mea kahi na kahi hum bhi jimmedaar hai kyo ki is system ka hissa hum bhi hai
Hume apni chavi badalte hue bandar se ek nagrik ke rup me aanaa hoga jo apne adhikaro ke liye awaj uthata ho aur desh ke prati apni jimmedaari bhi samajhata ho.
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