Diwali 2022 की तिथि को लेकर भ्रम, यहां जानिए सही तिथि के साथ लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि

Diwali 2022 हर साल कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को दिवाली मनाई जाती है। इस दिन धन की देवी माता लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है। शास्त्रों में दिवाली को सुख समृद्धि प्रदान करने वाला त्यौहार माना गया है। मान्यता के अनुसार दिवाली के दिन माता लक्ष्मी अपने भक्तों के घर आकर उन्हें धन-धान्य का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। दिवाली से पहले धनतेरस मनाया जाता है। 

Diwali 2022 त्यौहार की तिथि को लेकर भ्रम 

सुख समृद्धि प्रदान करने वाले दिवाली त्यौहार की तिथि को लेकर इस वर्ष असमंजस की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में दिवाली का त्यौहार किस दिन मनाएं लोगों में भ्रम बना हुआ है। आइये जानते हैं दीपावली की सही तिथि के साथ लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि के बारे में। 


Diwali 2022 का शुभ मुहूर्त 

2022 में कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 24 और 25 अक्टूबर दो दिन पड़ रही है। हालांकि 24 अक्टूबर को प्रदोष काल में अमावस्या तिथि होने के कारण दीपावली पर्व 24 अक्टूबर को ही मनाया जाएगामें। अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर सायंकाल 5 बजकर 27 मिनट से प्रारंभ होकर 25 अक्टूबर सायंकाल 4 बजकर 18  को समाप्त होगी।

सुजॉय घोष की अहल्या देख हिल जाएंगे आप

डायरेक्टर सुजॉय घोष ने रामायण की अहल्या पर आधारित एक शॉर्ट फिल्म बनाई है। 14 मिनट की इस शॉर्ट फिल्म 'अहल्या' में राधिका आप्टे को अहल्या के आधुनिक रूप में पेश किया गया। यह फिल्म अहल्या की कहानी को नए सिरे से पेश करती है।

रामायण की कहानी के मुताबिक इंद्र देव ने अहिल्या के साथ छल किया था और बाद में खामियाजा अहल्या को ही भुगतना पड़ा था जबकि उसकी कोई गलती नहीं थी। उसके पति गौतम ने उसे शाप देकर पत्थर बना देते हैं। फिल्म में इसका ठीक उल्टा दिखाया गया है। फिल्म में अहल्या इंद्र से बदला लेती है, उसके साथ छल करती है और उसे पत्थर बना देती है।

सास ने किया बहू का कन्यादान


सास ने किया बहू का कन्यादान, यह बात सुनने में अजीब लग सकती है, मगर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ऐसा ही कुछ हुआ है. बेटे की मौत के बाद एक महिला ने अपनी बहू का पुनर्विवाह कराया और खुद कन्यादान भी किया. वर्तमान दौर में सास व बहू के रिश्तों को लेकर आम धारणा अच्छी नहीं है, मगर होशंगाबाद की सविता के लिए उसकी बहू, बेटी से कम नहीं है. सविता के बेटे मनोज की शादी सुषमा से हुई थी, मगर मनोज की तीन वर्ष पूर्व मृत्यु हो गई. इसके बाद सविता को लगा कि सुषमा के लिए पूरा जीवन अकेले काटना भारी पड़ जाएगा. एक महिला के तौर पर सविता ने अपने को सुषमा में देखा तो उन्हें लगा कि उनकी बहू को नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए. ऐसा होने पर ही सुषमा सुखमय जीवन गुजार सकती है. उसके बाद सविता ने अपनी बहू के लिए बेटी की तरह वर की तलाश की तो उनका सम्पर्क भोपाल के जितेंद्र बागड़े से हुआ. जितेंद्र की पत्नी का भी बीते दिनों निधन हो गया था. ऐसी स्थिति में वह भी विवाह के लिए तैयार हो गया. जितेंद्र और सुषमा की रजामंदी के बाद आर्य मंदिर में पूरे रीति-रिवाज के मुताबिक विवाह संपन्न हुआ. इस मौके पर सविता ने सुषमा की मां की भूमिका निभाई और कन्यादान किया. सविता का कहना है कि उनके लिए सुषमा बहू नहीं, बेटी है. साथ ही वह कहती हैं कि जब सास, बहू को बहू मानती है तो बहू भी सास को सास का दर्जा देती है, अगर मां का दर्जा चाहिए तो बहू को बेटी मानना होगा. वहीं सुषमा कहती हैं कि सविता उनके लिए मां है और हमेशा उनसे मां की तरह स्नेह मिला है, लिहाजा वह भी उनके लिए बेटी की ही तरह रहेंगी. जितेंद्र कहते हैं कि वह अब अपने जीवन की नई शुरुआत कर रहे हैं, बीती सारी बातों को भूलकर नई जिंदगी की तरह इस दाम्पत्य जीवन को जीएंगे. जितेंद्र के दो बेटे हैं, उनमें एक निमिश कहता है कि मां के गुजर जाने के बाद परिवार में सूनापन आ गया था. पिता जी को भी एक साथी की जरूरत थी, अब उन्हें लगता है कि सब ठीक हो जाएगा. जितेंद्र व सुषमा के विवाह समारोह में बड़ी संख्या में नाते-रिश्तेदार शामिल हुए और सभी ने सुखमय व मंगलमय जीवन की शुभकामनाएं दीं. सभी ने इस विवाह को समाज में बढ़ रही कुरीतियों के खिलाफ एक नई शुरुआत बताया.

मैगी नूडल के विज्ञापन में बिग बी


मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने हाल ही में मैगी नूडल्स के एक विज्ञापन की शूटिंग पूरी की है। कई उत्पादों के ब्रांड एम्बेसेडर अमिताभ ने कहा कि एक कारगर विज्ञापन तैयार करना एक तीन घंटे की फिल्म बनाने से ज्यादा कठिन है। अमिताभ ने ट्वीट किया है, "मैगी नूडल्स विज्ञापन की शूटिंग पूरी की। यह काफी मजेदार रहा।" अमिताभ मानते हैं कि अच्छा और कारगर विज्ञापन बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है। बकौल अमिताभ, "लोग सोचते होंगे कि एक मिनट का विज्ञापन बनाना आसान है, लेकिन मेरी नजर में यह फिल्म बनाने से ज्यादा कठिन काम है।" "एक मिनट में ही विज्ञापन के माध्यम से जरूरी संदेश देना होता है। ऐसे विज्ञापनों में एक मिनट में ही लोगों को वह काम करने के लिए बाध्य किया जाता है, जो वे तीन घंटे मे करते हैं।"

भारत में लहलहा रहे जापानी पुदीने


उत्तर प्रदेश में बरेली मण्डल का चार जिलों में इन दिनों जापानी पुदीना उगाने का प्रचलन बढ रहा है. आधिकारिक सूत्रों ने आज यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि मण्डल के चारों जिलों बरेली, पीलीभीत, बदायूं और शाहजहांपुर में मेंथा पिपरेटा की पैदावार पहले से की जा रही थी, लेकिन किसानों का रुझान जापानी पुदीने की ओर बढने के बाद क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति पहले की अपेक्षा बेहतर हुई है. मेंथा पिपरेटा की किस्म में सुधार करके जापानी कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ दशक पहले मेंथा आरवेन्सेस नामक एक प्रजाति तैयार की जो जापानी पुदीने के नाम से बेहद लोकप्रिय हुई है. सूत्रों के अनुसार मण्डल में करीब डेढ-दो दशक पहले योजनाबद्ध तरीके से जब पुदीने की विभिन्न किस्मों की खेती को बढावा देने की शुरुआत की गई तो पता चलाकि किसानों को यह मालूम ही नहीं था कि इससे ज्यादा मुनाफा भी हो सकता है. उन्होंने बताया कि पुदीने की तमाम प्रजातियों के व्यावसायिक तथा औषधीय उपयोगों की वजह से इसकी उपज के दाम भी ऊंचे मिलते हैं. शिवालिक 88 जापानी पुदीने की भारत में तैयार उन्नत प्रजाति है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह किस्म बदलते मौसम में भी उत्पादन देती है और इस पर बीमारियों का असर कम ही होता है. बरेली मंडल में कुछ साल पहले प्रयोग के रूप में 3000 हेक्टेयर क्षेत्र में शिवालिक 88 पुदीने की बुआई कराई गई. उन्होंने बताया कि पुदीने की फसल किसी भी प्रजाति की हो उसे चिकनी दोमट वाले खेत जहां पानी सिंचाई और जल निकासी का अच्छा इंतजाम हो और मिट्टी का पीएच पांच से सात के बीच हो में ही बोना फायदेमंद रहता है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जापानी पुदीने की बुआई फरवरी से मार्च के दूसरे सप्ताह तक होती है. इसकी फसल की कटाई आमतौर पर दो बार तथा अच्छी फसल होने पर तीन बार की जाती है. उन्होंने बताया कि पहली बार फसल बोआई के 100 से 120 दिन के बाद के योग्य हो जाती है. इस समय तक पौधे में फूल आने लगते हैं. दूसरी कटाई इसके लगभग 70 दिन बाद करनी होती है. कटाई करने के एक सप्ताह पूर्व सिंचाई बंद करनी चाहिये खाद और पानी समुचित व्यवस्था होने पर इसकी तीन बार कटाई भी की जा सकती है. सूत्रों ने बताया कि फसल की कटाई के बाद स्टीम डिस्टिलेशन द्वारा घास का तेल निकाला जाता है, जो मेंथाल निर्माण के उपयोग में आता है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार दो बार कटाई करने में लगभग 200-250 क्विंटल घास प्रति हेक्टेयर की पैदावार होती है, जिसमें से लगभग 150 किलोग्राम तेल प्राप्त हो जाता है. उन्नतिशील प्रजातियों में लगभग 250 से 300 किलोग्राम घास और लगभग 200 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है. आमतौर पर पुदीने का घरेलू उपयोग खाने में खुशबू पैदा करने के लिये अथवा स्थानीय तौर पर स्थापित आसवन संयंत्रों के जरिये मेंथॉल बोल्ड क्रिस्टल, पिपरमेंट तेल और मेंथॉल रसायन बनाने में भी होता है, इस तरह तैयार पदार्थों का इस्तेमाल टूथपेस्ट, आइसक्रीम और खांसी की दवा बनाने में भी होता है. उत्तर प्रदेश में पुदीने की विभिन्न किस्मों में करीब दो-ढाई हजार टन मेंथॉल का उत्पादन होता है. मेंथॉल का सर्वाधिक उपयोग मसालों, चूरन, हाजमे की गोलियां, खांसी की गोलियां बाम, माउथवॉश और सर्दी निवारक दवाओं में होता है. विदेश में भी आईपी ग्रेड के मेंथा ऑयल और क्रिस्टल की खासी मांग है. बरेली मंडल में जापानी पुदीने की इस खेती से लगता है कि जल्द ही राज्य के बाकी जिलों में भी मेंथॉल आरवेन्सेस की महक फैलने लगेगी.

खत्म हुआ मतदान का दौर

लगभग एक माह तक पूरी तरह से थका देने वाला लोक सभा चुनाव का कार्यक्रम अब समाप्त हो गया। चुनाव आयोग के अनुसार चुनाव शांतिपूर्ण हुए जबकि नक्सल प्रभावित इलाकों में कुछेक हिंसा की वारदातें हुई जिसमे कई लोग मारे गए। भारत के चुनावी इतिहास के पन्ने को अगर पलट कर देखा जाए तो एक बात गौर करने वाली है की भारत में दिनोदिन चुनावों में हो रही हिंसा में कमी आई है जोकि एक लोकतान्त्रिक देश के लिए काफी बेहतर है। एक बात और ध्यान देने वाली है की इस चुनाव प्रक्रिया में उन वर्गों की भागीदारी में भी वृद्धि देखी गई है जो पहले के चुनाव में हाशिए पर रहा करते थे। इस वृद्धि के लिए चुनाव आयोग की सक्रियता आख़िर सफल हुई और इसका श्रेय भी काफी हद तक चुनाव आयो़ग को जाता है। इस चुनाव में उन राजनैतिक संगठनों और ताकतों का भी इसमें सकारात्मक योगदान है, जिन्होंने पिछडों, दलितों व स्त्रियों को लोकतंत्र में ज्यादा महत्वपूर्ण व सक्रिय बनाया है। इससे साफ़ जाहिर होता है की हमारा देश लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बेहतर और प्रभावशाली बनाने की प्रक्रिया में आगे बढ़ रही है। लेकिन इसके बावजूद भी इस चुनाव में कुछ कमिया और सवाल देखे जा सकते है जिसका समाधान दूंढ़ लेना लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बेहतर और प्रभावशाली बनाने की प्रक्रिया में मददगार साबित होगा। वह समस्या है कि हमारे चुनाव छेत्र बहुत बड़े होते है और चुनाव में प्रचार के लिए समय बहुत होता है। ऐसी स्थिति में उम्मीदवार वोटरों के बीच ज्यादा संपर्क नही बना पाते है। जिसकी वजह से उम्मीदवार जनसंपर्क का दूसरा विकल्प पैसे में ढूंढता है। एक ऐसे व्यवस्था के बारे में सोचना होगा जिससे जनता और उम्मीदवार के बीच सीधा संपर्क हो सके। और जिससे धन और बल दोनों का प्रभाव भी कम हो सकता है। अधिकतर देखा गया है की लोक सभा के चुनाव में स्थानीय मुद्दे महत्वपूर्ण न होकर केंद्रीय मुद्दे ज्यादा हावी होते है। पूरे देश में विकास केंद्रीय मुद्दा बनता जा रहा है। जबकि स्थानीय और केंद्रीय मुद्दों के बीच की दूरिया भी धुंधली होती जा रही है। चुनाव में सभी वर्गों की भागीदारी बढ़ रही है और इस भागीदारी को और सरल बनने से लोकतंत्र और मजबूत बनेगा। चुनावों में उम्मीदवार और मतदाता के बीच जितना सरल तरीके से सम्पर्क होगा धन और बल की आवश्यकता उतनी ही कम होगी। चुनाव आयोग के सखत रवैये के बावजूद, सीधा संपर्क नही हो पाने के कारन भी पैसे का चलन बढ़ा है। फिलहाल लोकतंत्र के इतने मजबूत होने से हम ऐसे कुछ जटिल समस्याओ के बारे में सोच विचार सके।

तीसरे मोर्चे की वास्तविकता : स्वप्न, हकीकत या छलावा

१५वीं लोकसभा चुनाव की तिथि निर्धारित होते ही तीसरे मोर्चे के गठन का भी ऐलान कर दिया गया। तीसरे मोर्चे के लिए चलाया जा रहा अभियान गति पकड़ रहा है। तीसरे मोर्चे का सपना कोई नया नही है। एक विचार के तौर पर यह स्थापना जनता को काफ़ी आकर्षित भी करती है की देश में एक ऐसा मंच बने जो उन सभी मुश्किलों से मुक्त हो जिसके लिए कांग्रेस पूरे देश में जानी जाती है। और साथ ही भाजपा की तरह संघ और साम्प्रदायिकता की कोई छाया भी न पड़े। कांग्रेस और भाजपा देश की राजनीति की दो ऎसी हकीक़त है जिसके आस-पास ही पिछले कुछ वर्षो से भारतीय राजनीति ध्रुवीकरण है। तीसरे मोर्चे की कल्पना इन दोनों से अलग एक सुनहरा व सुव्यवस्थित देश बनाने की है। लेकिन जाहिर सी बात है की इसके लिए जो भी महारथी आयेंगे वो भी किसी स्वर्ग से नही बल्कि इन दोनों ध्रुवों के आस-पास घूमने वाले महारथी ही होंगे जो दिल्ली की सत्ता में अपनी हिस्सेदारी या अपने जुगाड़ तलाश रहे होंगे। इसमें बहुत से ऐसे भी होंगे समय के नजाकत को देखते हुए पाला भी पलट सकते है।

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हृदय रोगों को दूर करने में रामबाण है मिलेट्स मिलेट्स (Millets) हमारे लिए एक बहुत ही स्वस्थ खाद्य हैं। ये भारतीय खाद्य पदार्थ हैं, जो कि पौष्...