शुक्र है आखिर में चुनावी उत्सव खत्म हो ही गया। लगभग एक महीने से अधिक तक चले इस चुनावी उत्सव में छः राज्यों के विधान सभा चुनाव हुए जिनमें दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और जम्मू कश्मीर राज्य शामिल थे। इस छः राज्यों के चुनाव के दौरान जनता देश की अनेको राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक घटनाओं से रूबरू हुई। इनमे आर्थिक मंदी, नौकरिओं में कटौती, बढती बेरोजगारी, बढती महंगाई और आतंकवाद जैसे घटना शामिल रहे। जनता ने यह भी देखा की किस प्रकार पार्टी में टिकट न मिलने पर नेता पार्टी से बागी हो जाते है। आशा लगाये पार्टी के उम्मीदवारों को चुनावी टिकट के बजाए खाली हाथ लौटना पड़ा तब उम्मीदवारों और समर्थकों ने पार्टी के आलाकमान के खिलाफ जम कर नारेबाजी की व पार्टी के विरुद्ध बगावत कर दी। इस विरोध में अपनों को टिकट न दिलवा पाने पर कई बड़े नेताओं ने भी बागिओं के साथ मिलकर पार्टी पर टिकट बिक्री का आरोप लगाया। इस प्रकार की राजनीति से जनता के बीच में क्या संदेश जाएगा। दूसरी तरफ़ राजनीतिक दलों ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए सिरे से खारिज कर दिया है। इसी सब कुछ सामान्य चल रहा था की अचानक दिल्ली में २९ नवम्बर को होने वाले चुनाव के ठीक दो दिन पहले मुंबई में आतंकी हमला हुआ जिसे अब तक के आतंकी इत्तिहास में सबसे बड़ा आतंकी हमला बताया जा रहा है। ६० घंटे तक चला इस आतंकी हमले ने देश की सुरछा व्यवस्था की कलाई खोल कर रख दी है। इस घटना में कई निर्दोषों व मासूमों की जान गई तो आतंकवादियों से मुठभेड़ में देश के कई सुरछाकर्मी शहीद हो गए। इस घटना ने केवल देश में ही नही पुरे विश्व में हलचल मचा दी। कुछ का तो कहना था की इसे भारत का ९/११ कहना ग़लत नही होगा जिसमे आतंकवादियों ने मुंबई की १०५ साल पुराने होटल ताज व होटल ओबेराय को सर्वाधिक नुकसान पहुचाया है। इसके बावजूद हमारे नेताओं ने मृतकों व शहीदों के प्रति सहानुभूति प्रकट करने व आतंक के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाने के बजाए आपस में एक दूसरे आरोप लगाये जा रहे है। विपछ व सहयोगी दलों के आलोचनाओं व जनता के आक्रोश से बचने के लिए सरकार ने तुंरत केंद्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल, महाराष्ट्र के मुह्यमंत्री विलासराव देशमुख और महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटिल का इस्तीफा स्वीकार कर लिया। इसके बावजूद सरकार इस घटना से सीख लेने के बजाये राजनीति करती नजर आई। महाराष्ट्र में रिक्त पड़े मुह्यमंत्री व गृहमंत्री के पद को लेकर जो हो हंगामा हुआ वो किसी से छुपा नही है। यदि इन नेताओं में जरा भी नैतिकता बची होती तो इस वक्त कुर्सी के लिए आपस में लड़ने के बजाये समन्वय बनाकर आतंक से लड़ने का उपाय सोचते। लेकिन जनता की जनप्रतिनिधि कहलाने वाले ये नेता अब इस भ्रम में न रहे। जनता सरकार के इसप्रकार के रवैये से परेशान और आक्रोशित है। जनता अब वह झूठे वादों में नही आने वाली है। इसका परिणाम ५ राज्यों के चुनावों में देखा जा सकता है। जिसमे कांग्रेस ने ३ राज्यों में व बीजेपी ने २ राज्यों विजय हासिल की। जनता का यह संदेश एक तरह से आगामी लोकसभा चुनाव का संकेत है। यानी सभी राजनीतिक पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अभी से सोच विचार करना शुरू कर दे।
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