सास ने किया बहू का कन्यादान, यह बात सुनने में अजीब लग सकती है, मगर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ऐसा ही कुछ हुआ है. बेटे की मौत के बाद एक महिला ने अपनी बहू का पुनर्विवाह कराया और खुद कन्यादान भी किया. वर्तमान दौर में सास व बहू के रिश्तों को लेकर आम धारणा अच्छी नहीं है, मगर होशंगाबाद की सविता के लिए उसकी बहू, बेटी से कम नहीं है. सविता के बेटे मनोज की शादी सुषमा से हुई थी, मगर मनोज की तीन वर्ष पूर्व मृत्यु हो गई. इसके बाद सविता को लगा कि सुषमा के लिए पूरा जीवन अकेले काटना भारी पड़ जाएगा. एक महिला के तौर पर सविता ने अपने को सुषमा में देखा तो उन्हें लगा कि उनकी बहू को नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए. ऐसा होने पर ही सुषमा सुखमय जीवन गुजार सकती है. उसके बाद सविता ने अपनी बहू के लिए बेटी की तरह वर की तलाश की तो उनका सम्पर्क भोपाल के जितेंद्र बागड़े से हुआ. जितेंद्र की पत्नी का भी बीते दिनों निधन हो गया था. ऐसी स्थिति में वह भी विवाह के लिए तैयार हो गया. जितेंद्र और सुषमा की रजामंदी के बाद आर्य मंदिर में पूरे रीति-रिवाज के मुताबिक विवाह संपन्न हुआ. इस मौके पर सविता ने सुषमा की मां की भूमिका निभाई और कन्यादान किया. सविता का कहना है कि उनके लिए सुषमा बहू नहीं, बेटी है. साथ ही वह कहती हैं कि जब सास, बहू को बहू मानती है तो बहू भी सास को सास का दर्जा देती है, अगर मां का दर्जा चाहिए तो बहू को बेटी मानना होगा. वहीं सुषमा कहती हैं कि सविता उनके लिए मां है और हमेशा उनसे मां की तरह स्नेह मिला है, लिहाजा वह भी उनके लिए बेटी की ही तरह रहेंगी. जितेंद्र कहते हैं कि वह अब अपने जीवन की नई शुरुआत कर रहे हैं, बीती सारी बातों को भूलकर नई जिंदगी की तरह इस दाम्पत्य जीवन को जीएंगे. जितेंद्र के दो बेटे हैं, उनमें एक निमिश कहता है कि मां के गुजर जाने के बाद परिवार में सूनापन आ गया था. पिता जी को भी एक साथी की जरूरत थी, अब उन्हें लगता है कि सब ठीक हो जाएगा. जितेंद्र व सुषमा के विवाह समारोह में बड़ी संख्या में नाते-रिश्तेदार शामिल हुए और सभी ने सुखमय व मंगलमय जीवन की शुभकामनाएं दीं. सभी ने इस विवाह को समाज में बढ़ रही कुरीतियों के खिलाफ एक नई शुरुआत बताया.
सास ने किया बहू का कन्यादान
सास ने किया बहू का कन्यादान, यह बात सुनने में अजीब लग सकती है, मगर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में ऐसा ही कुछ हुआ है. बेटे की मौत के बाद एक महिला ने अपनी बहू का पुनर्विवाह कराया और खुद कन्यादान भी किया. वर्तमान दौर में सास व बहू के रिश्तों को लेकर आम धारणा अच्छी नहीं है, मगर होशंगाबाद की सविता के लिए उसकी बहू, बेटी से कम नहीं है. सविता के बेटे मनोज की शादी सुषमा से हुई थी, मगर मनोज की तीन वर्ष पूर्व मृत्यु हो गई. इसके बाद सविता को लगा कि सुषमा के लिए पूरा जीवन अकेले काटना भारी पड़ जाएगा. एक महिला के तौर पर सविता ने अपने को सुषमा में देखा तो उन्हें लगा कि उनकी बहू को नए जीवन की शुरुआत करनी चाहिए. ऐसा होने पर ही सुषमा सुखमय जीवन गुजार सकती है. उसके बाद सविता ने अपनी बहू के लिए बेटी की तरह वर की तलाश की तो उनका सम्पर्क भोपाल के जितेंद्र बागड़े से हुआ. जितेंद्र की पत्नी का भी बीते दिनों निधन हो गया था. ऐसी स्थिति में वह भी विवाह के लिए तैयार हो गया. जितेंद्र और सुषमा की रजामंदी के बाद आर्य मंदिर में पूरे रीति-रिवाज के मुताबिक विवाह संपन्न हुआ. इस मौके पर सविता ने सुषमा की मां की भूमिका निभाई और कन्यादान किया. सविता का कहना है कि उनके लिए सुषमा बहू नहीं, बेटी है. साथ ही वह कहती हैं कि जब सास, बहू को बहू मानती है तो बहू भी सास को सास का दर्जा देती है, अगर मां का दर्जा चाहिए तो बहू को बेटी मानना होगा. वहीं सुषमा कहती हैं कि सविता उनके लिए मां है और हमेशा उनसे मां की तरह स्नेह मिला है, लिहाजा वह भी उनके लिए बेटी की ही तरह रहेंगी. जितेंद्र कहते हैं कि वह अब अपने जीवन की नई शुरुआत कर रहे हैं, बीती सारी बातों को भूलकर नई जिंदगी की तरह इस दाम्पत्य जीवन को जीएंगे. जितेंद्र के दो बेटे हैं, उनमें एक निमिश कहता है कि मां के गुजर जाने के बाद परिवार में सूनापन आ गया था. पिता जी को भी एक साथी की जरूरत थी, अब उन्हें लगता है कि सब ठीक हो जाएगा. जितेंद्र व सुषमा के विवाह समारोह में बड़ी संख्या में नाते-रिश्तेदार शामिल हुए और सभी ने सुखमय व मंगलमय जीवन की शुभकामनाएं दीं. सभी ने इस विवाह को समाज में बढ़ रही कुरीतियों के खिलाफ एक नई शुरुआत बताया.
मैगी नूडल के विज्ञापन में बिग बी
मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने हाल ही में मैगी नूडल्स के एक विज्ञापन की शूटिंग पूरी की है। कई उत्पादों के ब्रांड एम्बेसेडर अमिताभ ने कहा कि एक कारगर विज्ञापन तैयार करना एक तीन घंटे की फिल्म बनाने से ज्यादा कठिन है। अमिताभ ने ट्वीट किया है, "मैगी नूडल्स विज्ञापन की शूटिंग पूरी की। यह काफी मजेदार रहा।" अमिताभ मानते हैं कि अच्छा और कारगर विज्ञापन बनाना बेहद चुनौतीपूर्ण काम है। बकौल अमिताभ, "लोग सोचते होंगे कि एक मिनट का विज्ञापन बनाना आसान है, लेकिन मेरी नजर में यह फिल्म बनाने से ज्यादा कठिन काम है।" "एक मिनट में ही विज्ञापन के माध्यम से जरूरी संदेश देना होता है। ऐसे विज्ञापनों में एक मिनट में ही लोगों को वह काम करने के लिए बाध्य किया जाता है, जो वे तीन घंटे मे करते हैं।"
भारत में लहलहा रहे जापानी पुदीने
उत्तर प्रदेश में बरेली मण्डल का चार जिलों में इन दिनों जापानी पुदीना उगाने का प्रचलन बढ रहा है. आधिकारिक सूत्रों ने आज यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि मण्डल के चारों जिलों बरेली, पीलीभीत, बदायूं और शाहजहांपुर में मेंथा पिपरेटा की पैदावार पहले से की जा रही थी, लेकिन किसानों का रुझान जापानी पुदीने की ओर बढने के बाद क्षेत्र के किसानों की आर्थिक स्थिति पहले की अपेक्षा बेहतर हुई है. मेंथा पिपरेटा की किस्म में सुधार करके जापानी कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ दशक पहले मेंथा आरवेन्सेस नामक एक प्रजाति तैयार की जो जापानी पुदीने के नाम से बेहद लोकप्रिय हुई है. सूत्रों के अनुसार मण्डल में करीब डेढ-दो दशक पहले योजनाबद्ध तरीके से जब पुदीने की विभिन्न किस्मों की खेती को बढावा देने की शुरुआत की गई तो पता चलाकि किसानों को यह मालूम ही नहीं था कि इससे ज्यादा मुनाफा भी हो सकता है. उन्होंने बताया कि पुदीने की तमाम प्रजातियों के व्यावसायिक तथा औषधीय उपयोगों की वजह से इसकी उपज के दाम भी ऊंचे मिलते हैं. शिवालिक 88 जापानी पुदीने की भारत में तैयार उन्नत प्रजाति है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह किस्म बदलते मौसम में भी उत्पादन देती है और इस पर बीमारियों का असर कम ही होता है. बरेली मंडल में कुछ साल पहले प्रयोग के रूप में 3000 हेक्टेयर क्षेत्र में शिवालिक 88 पुदीने की बुआई कराई गई. उन्होंने बताया कि पुदीने की फसल किसी भी प्रजाति की हो उसे चिकनी दोमट वाले खेत जहां पानी सिंचाई और जल निकासी का अच्छा इंतजाम हो और मिट्टी का पीएच पांच से सात के बीच हो में ही बोना फायदेमंद रहता है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार जापानी पुदीने की बुआई फरवरी से मार्च के दूसरे सप्ताह तक होती है. इसकी फसल की कटाई आमतौर पर दो बार तथा अच्छी फसल होने पर तीन बार की जाती है. उन्होंने बताया कि पहली बार फसल बोआई के 100 से 120 दिन के बाद के योग्य हो जाती है. इस समय तक पौधे में फूल आने लगते हैं. दूसरी कटाई इसके लगभग 70 दिन बाद करनी होती है. कटाई करने के एक सप्ताह पूर्व सिंचाई बंद करनी चाहिये खाद और पानी समुचित व्यवस्था होने पर इसकी तीन बार कटाई भी की जा सकती है. सूत्रों ने बताया कि फसल की कटाई के बाद स्टीम डिस्टिलेशन द्वारा घास का तेल निकाला जाता है, जो मेंथाल निर्माण के उपयोग में आता है. कृषि विशेषज्ञों के अनुसार दो बार कटाई करने में लगभग 200-250 क्विंटल घास प्रति हेक्टेयर की पैदावार होती है, जिसमें से लगभग 150 किलोग्राम तेल प्राप्त हो जाता है. उन्नतिशील प्रजातियों में लगभग 250 से 300 किलोग्राम घास और लगभग 200 किलोग्राम तेल प्राप्त होता है. आमतौर पर पुदीने का घरेलू उपयोग खाने में खुशबू पैदा करने के लिये अथवा स्थानीय तौर पर स्थापित आसवन संयंत्रों के जरिये मेंथॉल बोल्ड क्रिस्टल, पिपरमेंट तेल और मेंथॉल रसायन बनाने में भी होता है, इस तरह तैयार पदार्थों का इस्तेमाल टूथपेस्ट, आइसक्रीम और खांसी की दवा बनाने में भी होता है. उत्तर प्रदेश में पुदीने की विभिन्न किस्मों में करीब दो-ढाई हजार टन मेंथॉल का उत्पादन होता है. मेंथॉल का सर्वाधिक उपयोग मसालों, चूरन, हाजमे की गोलियां, खांसी की गोलियां बाम, माउथवॉश और सर्दी निवारक दवाओं में होता है. विदेश में भी आईपी ग्रेड के मेंथा ऑयल और क्रिस्टल की खासी मांग है. बरेली मंडल में जापानी पुदीने की इस खेती से लगता है कि जल्द ही राज्य के बाकी जिलों में भी मेंथॉल आरवेन्सेस की महक फैलने लगेगी.
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